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Rashi Singh

Romance

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Rashi Singh

Romance

प्रियतमा

प्रियतमा

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सुनो 

जब तुम कहती हो न 

कभी पास भी बैठ जाया करो 

और लिपट जाती हो मुझसे 

किसी बौराई बेल की तरह 

सच 

मैं भूल जाता हूं हर दर्द और 

हर थकान 

जब तुम रखकर सिर मेरे 

घुटने पर और मेरे झुके सिर को 

लेकर अपनी 

मुलायम हथेलियों में 

झांकती हो मेरी आंखों में 

सच 

लगता है सारे ख्वाब पूरे हो गए 

और जब तुम्हारी मासूम आंखें  

भीड़ में भी ढूंढ़ती है मुझे 

सच खुद के होने के एहसास को 

जीने लगता हूं मैं 

जब पकड़कर हाथ मेरा 

चलती हो तुम 

लगता है जैसे मुझे 

मेरा खुदा मिल गया 

कभी खत्म न हो सफर 

हम तुम जन्म जन्म चलते रहें यूं ही 

एक ही हो रहगुजर और 

एक ही मंजिल ।



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