जिंदगी
जिंदगी
चिराग वही जले रात भर जो हवाओं से न डरे
संध्या से भोर तक साथ दिया बाती ने, डटे रहे ।
इजाफा होता गया मेरी, बौद्धिक संपदा में रोज
मैने किया मन का सदा और ,कोई कहे सो कहे ।
मैं आगे बढ़ा तो रोका गया नफरत और झांसे से
मगर अपने बड़े कदमों को हम हिदायत देते रहे ।
शिकवे , शिकायत और जवाबदेही अपनी ही रही
क्योंकि हम से ज्यादा हमें कोई जानता ही नहीं ।
चिराग वही जले........
।।
राशि सिंह
( मुरादाबाद उत्तर प्रदेश)
