परिलक्षित हो आदर्श
परिलक्षित हो आदर्श
ना कुछ बनेगा सिर्फ भजन से,
अपनाना होगा अब मानव धर्म ।
सबके हित में अपना हित है,
इसीको तो कहते हैँ सत्कर्म ।।
कष्ट हरें सब जन-जीवन के,
यह है सबका परम कर्तव्य।
निश्चित इससे ही सुधरेगा,
अपने संग जग का भी भवितव्य।।
मिट्टी धरती से सदा जुड़कर रहें,
अपने बुज़ुर्गोँ का अपनाएं आदर्श।
परिलक्षित हो अपने कर्तव्यों में,
सदप्रयास से सबका हो उत्कर्ष।।
सोच बदलना हुआ बहुत जरूरी,
समझना होगा मानवमन का मर्म ।
आडंबर में ही सिर्फ मत उलझना
पावन सदा रखना अपना अंतर्मन ।।