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Amit Kumar

Inspirational

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Amit Kumar

Inspirational

प्रीत

प्रीत

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जब शब्दों में व्याकुलता हो, तो सोचो मन का क्या होगा?

जब तपिश प्रीत की लगती है, तो तन-मन विह्वल ही होगा।

संसार वीराना लगता है, कुछ भाए भी तो क्या भाए?

खुद का भी खुद को ध्यान नहीं, जीना भी मन को न भाए।


सब कुछ तज देने की खातिर, कोई संशय या संकोच नहीं।

ये लोक-लाज या हानि-लाभ, इसके आगे कोई मोल नहीं।

सच्ची श्रद्धा और भक्ति भी, नतमस्तक होने लगती है,

वैकुण्ठ मिले न जन्मों तक, बस मन को प्रियतम ही भाए।


है प्रीत अगर सच्ची अपनी, तो पाना खोना कुछ भी नहीं।

प्रियतम की खुशियों में दिखती, खुशियां भी और सुख अपनी।

हर विरह की पीड़ा सह लेंगे, हर पथ पर साथ निभाएंगे,

हर सांस नाम है श्याम-श्याम, फिर दूजा कोई कैसे भाए।



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