प्रेरणा
प्रेरणा
प्रातः खिले फूल से
कोयल की कूक से,
वृक्षों की डाल से
पंछी की चाल से।
मन प्रीति बाँधकर
हृदय तार जोड़कर,
टकटकी लगाकर
मन पंछी डोलकर।
अभिभूत हो रहे
तन-मन खो रहे।
सीख हम ले रहे
प्रेरणा ले रहे,
मुदित भाव से वो
उपहार दे रहे।
धरती के कण से
वन उपवन से
गली-गली द्वार से
रितुओं के सार से।
अंतस उजासकर
वेग मय होकर
प्राण बिंदु देकर
गतिमान होकर।
शांत भाव हो रहे
दुराभाव खो रहे।
सीख हम ले रहे
प्रेरणा ले रहे,
मुदित भाव से वो
उपहार दे रहे।
खिलते कमल से
ढलते सूरज से
दीप की ज्योति से
सीप के मोती से।
निर्विकार होकर
गुणों को समेटकर
दुर्गुणों को ठेलकर
सत्यता प्राप्त कर
शीतल वो हो रहे
उष्णता खो रहे।
सीख हम ले रहे
प्रेरणा ले रहे,
मुदित भाव से वो
उपहार दे रहे।
