प्रेमराग
प्रेमराग
बनाकर आशिक़ अपना तुमने
सीखा दी हमे आशिकी,
खोया तेरे प्यार में इस कदर
खबर नहीं मुझे अपने आप की !
तेरे दिल मे में हूँ या फिर
मेरे दिल मे तुम हो !
दिलों के इस दलदल मे में हूँ खोया
तुम भी कही पर गुम हो।
हूँ दूर तुझसे पर तेरे साथ गुजारे
वो पल बहुत याद आते है !
बेठ कर पेड़ों किनारे जब
तेरी जुल्फ़ों से खेला करते थे।
तेरी साँसों की ख़ुशबू जब
साँसों में घुल जाया करती थी !
शोर भी लगता था प्रेमगीत जब
चिड़ियाँ चहचाया करती थी।
और भी बातें है बताने को पर
रहने दो उनको राज़ की !
बनाकर आशिक़ अपना
तुमने सीखा दी हमे आशिकी।
मिलने की तड़फ अब
तुझसे ओर सही नहीं जाती !
दिल में है जो बाते अब वो
कलम से लिखी नहीं जाती।
हारकर दिल की बाज़ी मे
तेरा दीवाना हो गया !
धड़कता था दिल जो सीने में
आज वो भी बेगाना हो गया।
तेरे प्यार में पागल ये दिल
अब दूर और नहीं रह पायेगा !
दिलों की दूरियों का सिलसिला
अब और नही चल पायेगा।
मे हूँ प्रेमगीत उसका और
वो है धुन मेरे साज़ की !
बनाकर आशिक़ अपना
तुमने सीखा दी हमे आशिकी।