प्रेम
प्रेम
हम प्रेम में
अकसर ही
किसी का हो जाने
या फिर किसी को
अपना बनाने के फ़िराक़ में
प्रेम से निकल कर
पड़ जाते हैं मोह में
यही मोह हम को
प्रेम में आँख वाला
अंधा बना देता है
और यूँ हम स्वयं ही
अपने हाथों
अपने ही प्रेम का
गला घोट देते हैं
हम प्रेम में
अकसर ही
किसी का हो जाने
या फिर किसी को
अपना बनाने के फ़िराक़ में
प्रेम से निकल कर
पड़ जाते हैं मोह में
यही मोह हम को
प्रेम में आँख वाला
अंधा बना देता है
और यूँ हम स्वयं ही
अपने हाथों
अपने ही प्रेम का
गला घोट देते हैं