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Chandan Sharma

Others

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Chandan Sharma

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ग़ज़ल

ग़ज़ल

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पल में जाता हूँ इधर पल में उधर जाता हूँ मैं

कहाँ मालूम नहीं है हाँ मगर जाता हूँ मैं.. 


चलता हूँ रुकता हूँ और रुक के ठहर जाता हूँ मैं..

बैठ कर सोचता हूँ जाने किधर जाता हूँ मैं.. 


मैंने खुद को तो कभी तन्हा नहीं पाया कहीं

होती हो तुम भी मेरे साथ जिधर जाता हूँ मैं.. 


घेर लेती है मुझे शाम ही से यादें तेरी

और फिर रात होते होते बिखर जाता हूँ मैं.. 


उसके कूचे से कभी मेरा गुज़रना हो गर

साँसों को थाम के चुपके से गुज़र जाता हूँ मैं


और मेरे साथ कि ऐसा भी होता है अक़सर

मैं कहीं जाना नहीं चाहता पर जाता हूँ मैं.. 


रोज़िना एक नए तौर से जीता हूँ और

रोज़िना एक नए तौर से मर जाता हूँ मैं


क्या हुआ क्या न हुआ सोचती होगी बैठकर

रास्ता देख रही होगी माँ घर जाता हूँ मैं 


ख़ुदा के ख़ौफ में जो काम नहीं होते थे जान

तुम्हारे ख़ौफ में वो काम भी कर जाता हूँ मैं


ख़ुद को मैं कोसता हूँ ख़ुद से गिला करता हूँ

मआनी ख़ुद के नज़र से भी उतर जाता हूँ मैं


है हैरतअंगेज वो ख़्वाब में अब आती नहीं

सनसनीखेज़ ये है आए तो डर जाता हूँ मैं


पहले के जख़्म इधर भरते नहीं ऐ "जाज़िब"

और इधर एक नए जख़्म से भर जाता हूँ मैं

©चन्दन शर्मा,कटक


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