प्रेम रोग (प्रिय की)
प्रेम रोग (प्रिय की)
मोहोब्बत की वीरान हवेली में, आज आग जली है
शोला भी मिला और शबनम भी खिली है
शान्त हवाओं मे भी प्रेम चली है
बेदर्द आखों मे समन्दर की लहर दौड़ पड़ी है
बढ़ा प्रेम रोग, समस्त आकाश गूंज उठी है
पागलपन न सह पाया, प्रकृति भी झूम पड़ी है
रोग प्रेम का लग गया, दिल की धड़कने बढ़ गई है
सासें थम सी गई, नब्ज जम गई है
बेकरारी दोनों की बढ़ रही है
शोला शबनम के लिए तड़प रही है
इश्क़ की सारी दीवारें गिर रही हैं
मजहब टूट गए सारे, इश्क़ मिल रही है
रोक न पाया जमाना, मोहब्बत को, मुहब्बत से मिलने से,
कि मोहब्बत से मोहब्बत मिल रही है।

