प्रेम - परिभाषा ..
प्रेम - परिभाषा ..
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कुछ कहूं इससे पहले ही
तुम जान जाते हो
कैसे शब्दों को बिन कहे
पहचान जाते हो?
कहाँ सीखी तुमने
मौन की भाषा
क्या यही है
प्रेम - परिभाषा ..?
'समर्पित रहें सारे एहसास
न हो कहीं विरोधाभास
संशय न रहे आस पास
इतना हो अटूट विश्वास।
'मैं' कहीं न नज़र आए
'हम' में ही दुनिया समाये
चलो आज फिर दुहरायें
मिल कर यह कसम खाएं।