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Sujata Arora Dua

Others

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Sujata Arora Dua

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सृजनात्मकता

सृजनात्मकता

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तुम अपने ‘परों ’को तोलने लगी हो

सुना है अब तुम बोलने लगी हो ?

सुनो !

आवाज़ उतनी रखना कि

‘सुनी’ जाये

ऐसा ना हो कि 

व्यर्थ चली जाये ।


शब्दों में वज़न हो 

लहजे में दम हो

विचार में स्फूर्ति हो

सोच दूरदर्शी हो

नब्ज़ की पहचान हो

मौक़े में जान हो

हौंसले में वेग हो और 

दृष्टि स्पष्ट हो ,

ताकि 

पहचान पाओ कि 

अड़चनें कहॉं हैं ?

क्रूर है परिस्थिति?

समाज दृष्टिहीन है या 

कहीं आवेग दिशा -विहीन है ?


अच्छा सुनो ! 

तुम अग्नि बन मत चलना ।

पानी बन जाना ,कि 

उफान पर आओ तो

शिलाओं को ठेल दो 

आवेग में उठो तो 

‘ऊर्जा ‘का रूप लो

और अगर

मिट्टी से मिलो तो

कोंपलें प्रस्फुटित हों ।


याद रहे कि 

‘बल’ नहीं ‘नीति’ महान है 

और 

‘सृजनात्मकता ‘

तुम्हारे अस्तित्व की शान है ।


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