बेमोल की ख़ुशियाँ
बेमोल की ख़ुशियाँ
सुनो रुको तो ज़रा दम भर के लिए
देखो ना वो बगीचे का सफ़ेद फूल
हर रोज तुम्हें देख कर मुस्कराता है
वो सड़क किनारे बैठा मोची
जो गढ़ता है टूटे हिस्सों को
जिस पर धूल उड़ाती है
तुम्हारी सफ़ेद कार हर रोज़
जरा उतर कर उसे पूछो
हेल्लो फ्रेंड कैसे हो
अच्छा लगेगा जब वो स्नेह से
मुस्करा कर गर्दन हिलाएगा
कभी कर दिया करो माँ बाबा को
यूँ ही फ़ोन कह के कि बात करने
को मन हुआ
वो बहन जो राखी में प्यार बाँध
कर भेजती है
ब्याह दी तो परायी हो गयी क्या ?
तकती होगी अपने भैया की राह
वो एक दोस्त भी था न तुम्हारा
जो रोज एक्स्ट्रा लंच लाता था
क्योंकि तुम्हें उसका लंच अच्छा
लगता था
जाओ न मिल आओ उसे एक बार
बेमोल की ख़ुशियाँ है ये तो
चंद पल दे दो राह में बिछ जाएंगी।