प्रेम की परिभाषा
प्रेम की परिभाषा
भूख से बिलखते उस बच्चे को
जो झूठी पत्तलों में ढूंढता है
दो कौर ज़िन्दगी
देखकर जो हो जाती हैं आँखें नम
क्या ये प्रेम नहीं ?
दूर वितान में फैलाये परों को
जब उड़ती पतंगों और तारों से
खो देता है वो प्यारा पंछी
सहलाना अपनी गोद में
और सहेज कर रखना माँ जैसे
क्या ये मुहब्बत नहीं है ?
वो बूढ़ी माँ
जो झुलसती रही जीवन भर
संघर्षों की अग्नि में
और बनाती रही भविष्य सन्तान का
आज किसी कोने में बैठे
दो बातें बतियाने को तरसती
उस बूढ़ी माँ को
गले से लगाना, बतियाना
क्या यह प्यार नहीं है ?
प्यार वो नहीं
जो किसी की पीड़ा को देख
आहत ना हो पाए
प्यार वो है जो
किसी की भी आँख का आँसू
कर सके महसूस अपनी आँखों में
और मिटा दे उस पीड़ा का
अंश अंश
क्या तुमने किया है प्रेम
ऐसा प्रेम ?