प्रेम भारहीन होता हैं
प्रेम भारहीन होता हैं
प्रेम
भारहीन
होता है
यह
आश्रय
ढूंढ कर
खुद को
उसमें
आत्मसात
कर लेता है
कभी
आत्मा में
कभी
दिल में
कभी
दिमाग में
तो कभी
रोमरोम में
इस प्रेम के
अनेकों रूप है
वात्सल्य प्रेम
दांपत्यय प्रेम
मातृत्व प्रेम
स्नेहील प्रेम
यह नजरों से
होतेे हुए
दिल मेंं
घर
कर जाता है
प्रेम जो
हमेशा
हरा रहता है
ना हीं कभी
सूखता है
ना हीं
नष्ट
होता है
यह
अमर
अनश्वर
और
अविनाशी
हैं
इसे
पाने के लिए
सब
लालायित
रहते हैं।
