प्रेम अनुभूति
प्रेम अनुभूति
प्रेम एक ऐसी अनुभूति है, जो होने से पहले ना कोई,
उम्र देखती है ना वक्त, ना जगह देखती है ना रीति रिवाज.
मेरे कौन हो तुम ?
एहसास हो तुम उस प्रेम का,
जो उपजता है पहली बार,
नाजुक से हृदय में.......
स्पर्श हो तुम उस स्नेह का,
जो महसूस होता है,
किसी अपने के कंधे पर,
सिर रखने में.......
प्रतीक्षा हो तुम उस मिलन रात की,
जो....... सजाता है
अपने स्वप्नों में, अपने हृदय में.......
एकान्तता हो तुम,
उस सागर किनारे जैसी,
जहाँ बैठ मैं सोचता हूँ,
तुमको ,सिर्फ तुमको.......
प्रेम हो तुम,
वह प्रेम जो उपजा था,
राधा के हृदय से,
कान्हा के हृदय तक पहुँचने को,
सबसे अनभिज्ञ , सबसे सत्य.......
मैं पूछता हूँ खुद से,
आखिर कौन हो तुम?
वह कल्पना,
जो मेरे हृदय ने की थी प्रेम की
उस कल्पना का यथार्थ हो तुम,
मेरा प्रेम हो तुम।।