प्रदूषण मुक्त हरियाली खुशहाली
प्रदूषण मुक्त हरियाली खुशहाली
अविनि अम्बर ऋतुएं मौसम
युग से मांगती है अपना अस्तित्व
अधिकार जीवन मर्म मर्यायादा आधार।।
दुःख पीड़ा से आहत प्रकृति
परिवार जंगल जीवन ,वन जीवन
जल जीवन अब परिहास।।
बृक्ष कट रहे नही बचा हरियाली
की खुशहाली का साम्राज्य।।
यंत्र तंत्र सर्वत्र बस रहीं नई बस्तियां
सिमट रहे है खेत खलिहान।।
सड़क गली मोहल्लों में ध्वनि प्रदूषण
बहरी होती नव पीढ़ी नही सुनाई देती
उसको भावी आवाज।।
उद्योगों के कचरों मानव का गंदा
ढो रहे नदियों के प्रवाह दूषित जल
बन रहा काल।।
कचरा कूड़ा बन रहे पर्वत पहाड़
प्रकृति संसाधन का दुरुपयोग करता
युग बैठा जिस डाल पर दे रहा उसको काट।।
दुरुपयोग की संस्कृति संस्कार
दहसत दंश को दावत देता प्राणी
प्राण जल अब छोड़ रहा धरातल
बचा हुआ अब दूषित जल।।
दिन अब दूर नही जंग लड़े जाएंगे
जल की खातिर जल जीवन का
संरक्षण प्राकृतिक संवर्धन।।
धड़कन श्वांस कठिन वायु
प्रदुषण घुट घुट कर मरता
मानव देव प्रकृति ही बनी है
दानव।।
विशुद्ध शुद्ध कुछ बचा नही
प्रदूषित पल पल का जीवन
युग संसार जीवन कठिन
चुनौती युग ही नर्क समान।।
बच्चा किशोर युवा कर
रहा पुकार मेरे संम्मानित
श्रेष्ठ वर्तमान मुझे दिखोओ
मेरे सुरक्षित भविष्य का मार्ग।।
तुम्हे पुरुखों ने दिया सुंदर
स्वछ विशुद्ध युग संसार हमें
चाहिये शुद्ध हवा पानी प्रकृति
पवन अविनि आकाश।।
बचा बस एक मार्ग उपाय
प्रकृति संरक्षण प्रदूषण मुक्त
प्रकृति प्राणी के रिश्तों का संरक्षण।।
बृक्ष पुत्र समान हर मानव बृक्ष
लगाए पाले जैसे संतान घर घर
हरियाली की खुशहाली की बान।।
दरवाजे दरवाजे गमलो में हरियाली
की खुशहाली का शंखनाद क्रांति
जल संरक्षण वन संरक्षण स्वच्छ
पर्यावरण के कर्म धर्म के महायज्ञ
शुभारंभ आरम्भ आवश्यक का वर्तमान।