पराया मैंने
पराया मैंने
बड़ी बेरहमी से जज्बात को दबाया मैंने,
दिल की हर एक बात को छुपाया मैंने।
तू मेरे दर्द रही कितनी बेखबर, लेकिन,
रुबरु तेरे हर पल मगर मुस्कुराया मैंने।
झलक न जाए इज़हार मेरी आंखों से,
तेरे चेहरे से निगाहों को हटाया मैंने।
कोई उम्मीद न पनप जाए तुझे पाने की,
हर लम्हा समझा है तुझको पराया मैंने।
तेरी हँसी, तेरी खुशी, तेरी सलामती को,
अक़्सर दुआ को हाथ है उठाया मैंने।
फूल सेहरा मे खिलाना था मुश्किल दोस्तो
इसलिए काँटो को ही प्यार से उगाया मैंने।
दफन हो गई हसरतें सारी हालात के कब्र में,
थी मर्ज़ी ए खुदा यही, खुद को समझाया मैंने।