प्राणवायु
प्राणवायु
शब्दों की शैली जो भी हो,
मैं अपना अनुभव लिखता हूं।
जो सच्चाई है हम सबकी,
मैं उसका वर्णन करता हूं।
व्यापार में दुनिया अंधी थी,
मानव का स्वार्थ चरम पर था।
मानव की मानवता हारी,
जिसका जिम्मा हम सब पर था।
अस्तित्व मिटाया खेतों का,
बहुमंजिल भवन बना डाला।
पर्वत माला की श्रेणी को,
कलपुर्जों से हिला डाला।
मोटर वाहन की सड़कों पर,
रफ्तार नहीं थम पाती थी।
वायु प्रदूषण के कारण,
जीवों की दम घुट जाती थी।
हर सुविधा दी थी सृष्टि ने,
एहसास नहीं था भक्षों को।
फिर भी नियत भरी नहीं,
बेचा खाया इन वृक्षों को।
पहले तो पानी बिकता था,
अब प्राणवायु भी बिकती है।
गलियों में जो खुशहाली थी,
अब देखे से नहीं दिखती है।