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Krishna Khatri

Abstract

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Krishna Khatri

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पर है तो

पर है तो

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भी आता है पितृपक्ष

किये जाते हैं श्राद्ध 

अपने पूर्वजों के 

अपने प्रियजनों के

पंद्रह दिनों का 


है ये मेला पितृजनो का 

इन दिनों करते हैं पूजा उनकी

बड़ी श्रृद्धा से लगाते हैं भोग 

करते हैं तर्पण

मनाते हैं श्राद्ध

इस तरह


याद करते हैं उनको

भूल चुके हैं जिनको

उन्हीं की याद दिलाने 

आते हैं ये पितृपक्ष

हम करते हैं सलाम उनको

जिन्होंने बनाए ये पितृपक्ष 


और धन्य है ये पितृपक्ष 

जो कम से कम

पंद्रह दिन ही सही

पर है तो

हमारे अपनों के लिए 

ये श्राद्ध ही तो है

जो गुजरी हुई 

हर उस पीढ़ी का 

परिचय करवाते हैं 


आने वाली हर पीढ़ी से 

भूत का वर्तमान से 

अपनों का अपनों से 

मेल-मिलाप का ये संगम 

बन जाता है 

पन्द्रह दिनों का उत्सव

जो होता केवल आडंबर 

करके आडंबर 

हो जाते छूमंतर !


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