पंत जी
पंत जी
जिज्ञासा रखता वहीं मानव अनमोल है।
प्रकृति का सुकुमार कहलाता
कलम की रेखा छोड़ गया,
अपनी पहचान बना गया
छोड़ गया अपना पद चिन्ह,
यही बात प्रकृति कहता।
दुरबोध शब्दों को तोड़ मरोड़ कर देते
प्रकृति के श्रृंगार में लपेट देते
अपना जीवन साहित्य साधना में समर्पित कर दिया।
उनका अविवाहित होकर जीवन बीते।
सात वर्ष की उम्र में ये करने लगे ,
कविताओं की रचना।
प्रेम था बचपन में साहित्य से,
भव बाधा तोड़ कर आगे बढ़े,
बन गए हिंदुस्तान के महान कवि।
प्रणाम करता हूं हाथ जोड़ कर,
हम शिष्य बने सुमित्रा नंदन पंत से।
