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Ratna Kaul Bhardwaj

Abstract

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Ratna Kaul Bhardwaj

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पिया का बटुआ

पिया का बटुआ

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पिया का बटुआ 


मेहंदी रचा के पिया के घर जब आई थी मैं 

पीहर छोड़ के नया घर बसाने आई थी मैं 

 

वचन लिया था हमने यह सम्बन्ध निभाने का  

जो था , एक नहीं, दो नहीं, पूरे सात जन्मों का 


मीठा,खट्टा,कड़वा रसीला,रस जीवन के हो जितने 

हर पल रिश्ता है निभाना ली थी फेरों में कसम हमने 


उनका कुटुम्भ है बटुए जैसा रंग भरे है उसमें कितने 

सारे रिश्ते घर के यह है कितने प्यारे कितने अनूठे 


जहाँ माता -पिता है सम्पति बराबर लाखों की 

क्या है उनके जज़्बात, क्या मान्यता उनकी बातों की 


भाई - भाभी बड़े उनके राम सीता सम्मान है  

संग संग आगे बढ़ना यहीं उनके अरमान है  


किसी का भाभी बोलना रस गोलता है कानों में 

और अद्भुत प्यार छुपा है उसके एहसासों में 


प्यार दुलार खूब भरा है पिया के उस बटुए में 

हर प्राणी का प्रयास है परिवार को जोड़े रखने में 


बटुए में पैसा सीमित है पर प्यार की कोई सीमा नहीं 

जब तक शरीर में प्राण है , मरना है यही जीना यहीं  


पैसा तो इंसान का बनाया कागज़ का एक टुकड़ा है

नंबरों का खेल है उसमें, नंबरों से ही जुड़ा है 


जीवन रुपी यह बटुआ परिवारों से सजता है 

मूर्ख है वह मनुष्य जो इस सौगात से बचता है।


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