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Brijlala Rohanअन्वेषी

Inspirational Children

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Brijlala Rohanअन्वेषी

Inspirational Children

पिताजी बता के जाते

पिताजी बता के जाते

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जबसे दूर गये आप, देकर मुझे जीवन में जुदाई का अभिशाप।

लाड़ -प्यार-दुलार से वंचित हुआ मैं !        

रहते तो मुझे दुनिया की रीति समझाते !

करना क्या है मुझे इस जीवन में!

करने की विधि सिखलाते, आखिर बाप थे आप !

पिताजी तुम बता के तो जाते! हुआ अकेला मैं !

न माताजी का ही सर पर हाथ रहा !

बाहर -भीतर जुझ रहा स्वयं ही।

रहते तो मुकाबला में मेरा मनोबल तो जरूर बढ़ाते !

पिताजी तुम कह के जाते! तूने ही बचपन में

गिरना -उठना और गिरकर उठने की मर्म बताया।

बड़े आदमी बनने की प्रेरणा तूने ही तो जगायी !

सपने दिखाये तूने सपने को साकार करने की हौसला अफजाई की।

छुपे हुए मेरे गुणों को तूने ही निखारी !

फिर अकस्मात तूने क्यों मुझसे मुँह फेर लिये !

क्यों मुझसे बिन गलती बताये ही मोह भंग कर लिये!

रहते तो अपने बताये पथ पर चलते हुए मुझे पाते !

जीतते हुए मुझे फूला न समाते! 

पिताजी तुम एक बार तो मुझे जीते जी जीतते हुए देखकर जाते!



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