पिताजी बता के जाते
पिताजी बता के जाते
जबसे दूर गये आप, देकर मुझे जीवन में जुदाई का अभिशाप।
लाड़ -प्यार-दुलार से वंचित हुआ मैं !
रहते तो मुझे दुनिया की रीति समझाते !
करना क्या है मुझे इस जीवन में!
करने की विधि सिखलाते, आखिर बाप थे आप !
पिताजी तुम बता के तो जाते! हुआ अकेला मैं !
न माताजी का ही सर पर हाथ रहा !
बाहर -भीतर जुझ रहा स्वयं ही।
रहते तो मुकाबला में मेरा मनोबल तो जरूर बढ़ाते !
पिताजी तुम कह के जाते! तूने ही बचपन में
गिरना -उठना और गिरकर उठने की मर्म बताया।
बड़े आदमी बनने की प्रेरणा तूने ही तो जगायी !
सपने दिखाये तूने सपने को साकार करने की हौसला अफजाई की।
छुपे हुए मेरे गुणों को तूने ही निखारी !
फिर अकस्मात तूने क्यों मुझसे मुँह फेर लिये !
क्यों मुझसे बिन गलती बताये ही मोह भंग कर लिये!
रहते तो अपने बताये पथ पर चलते हुए मुझे पाते !
जीतते हुए मुझे फूला न समाते!
पिताजी तुम एक बार तो मुझे जीते जी जीतते हुए देखकर जाते!
