पिता!!
पिता!!


पिता पर क्या लिखूँ
वह तो खुद कलमकार हैं
किताब हैं
जिन्दगी का एक
अधूरा किस्सा है
जो सदैव आगे
पीढ़ी दर पीढ़ी
वट वृक्ष की तरह जीवंत हैं
चलायमान है
प्रसाद के मनु की तरह
एक महामानव हैं
जिसने सृजित किया
कामायनी को !
पिता पर क्या लिखूँ
वह तो खुद कलमकार हैं
किताब हैं
जिन्दगी का एक
अधूरा किस्सा है
जो सदैव आगे
पीढ़ी दर पीढ़ी
वट वृक्ष की तरह जीवंत हैं
चलायमान है
प्रसाद के मनु की तरह
एक महामानव हैं
जिसने सृजित किया
कामायनी को !