पिता ना हंस सका ना रो सका
पिता ना हंस सका ना रो सका


बन कर पिता समझ में आया कि
पिता क्या होता है।
सर पर जिम्मेवारियों का बोझ
और दिल में दर्द लिए हंसता रहता है।
पत्नी मां बाप बाल बच्चों का
सबका ख्याल रहता उसको
बड़े अदब से पिता कहते जिसको।
सृष्टि के निर्माण से मां को बहुत
सम्मान दिया
पर कवियों लेखकों ने पिता को ना जानें
क्यों अकेला छोड़ दिया।
शायद वो थोड़ा कड़क है
उसे प्यार दिखाना और जताना नहीं आता।
जिसे स्त्री के जैसे जीवन का सलीका नहीं आता।
पर जन्म से लेकर विकास तक
पिता सबके लिए बराबर सोचता है
आधे पेट रहकर भविष्य को देखता है।
टूटी चप्पल
तन पर पुराने कपड़े
आंखों पर एक पुराना ऐनक धरता है
हम सभी के भरण पोषण के लिए
दिन रात लगा रहता है।
गौर से देखो पिता कभी अपने लिए
जिया क्या
और तिनका तिनका कर घर बनाया
पर बच्चे कहते
पापा आपने हमारे लिए किया क्या
दिल में दर्द होता है।
सुनकर ऐसी बातें पिता को हमेशा
अफ़सोस होता है।
पिता मन ही मन रोता है
पर हमेशा चलता रहता है।
हमेशा हंसते रहता है।
क्या करे कोई एक मर्द के नसीब में
अक्सर ऐसा ही होता है।
दिल में दर्द को छुपाए
ना हँस सकता है ना रो सकता है।
पिता ना हँस सकता है ना रो सकता है।