पिता बिन अधूरा है जीवन
पिता बिन अधूरा है जीवन
अंगुली पकड़ कर जिसने चलना सिखाया
थके जब कदम उसने काँधे पर बिठाया।
कभी सख्त हो कर , कभी प्यार से समझाया
वो पिता थे जिन्होंने मेरा हौसला बढ़ाया।
जिम्मेदारियों तले, पूरा जीवन गुज़ारा
कठिनाइयां सहकर, मेरा भविष्य संवारा।
जब डरे सहमे कभी उनको आवाज़ दी
ढाल बनकर उन्होंने दिया मुझको सहारा।
पिता थे तो न थी कोई, जीवन में कठिनाई
बाखूबी हर कोई जिम्मेदारी निभाई।
पर वक्त पलटा, घड़ी ऐसी आई
दुखों की बिजली टूटी ,गमों की घटा छाई।
टूटा जब मैं ऐसा ,पिता की अर्थी सजाई
छूटा साथ पिता का , सारी खुशियां गावाईं।
दिया अर्थी को कँधा ,ऐसा आभास हुआ
लापरवाह ज़िन्दगी में ,जिम्मेदारियां का अहसास हुआ ।
आज सब कुछ है जिंदगी में, मगर वो पास नही
इस मुश्किल डगर में , सहारे की आस नही।
पिता छांव हैं , अरमान हैं , पहचान हैं
पिता उम्मीदों का खुला आसमान हैं।
ये जीवन पिता का एहसान है
ये जीवन पिता का एहसान है ।।
