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Harsh Patel

Drama

5.0  

Harsh Patel

Drama

फूल से भी छोटी सी दुनिया

फूल से भी छोटी सी दुनिया

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एक फूल से भी छोटी सी दुनिया थी मेरी।

वहाँ बहुत भरी थी खुशियां प्यारी।

सालों बीत गये है उनको पर आज भी मुझे याद हैं।

ज़िंदगी की सारी वह खुशियां आज भी मुझे याद है।


कितने नाज़ुक थे वह लम्हे मेरे

जहां हर कोई आ सकता था।

आज वह दिन है जहां

किसी को आने की इजाज़त नहीं।


हर रात कितनी हसीन थी

किसी की आहट भी कभी-कभी थी।

आज वही रात सूनी पड़ी है

यहां किसी की याद भी नहीं है।


आज भी मुझे याद है घर की

वह बड़ी - बड़ी सी दीवारें,

जिसे पकड़ - पकड़ कर सीखा था मैंने चलना।

आज भी मुझे याद है

वह दादी मां के किस्से,

जिसे सुन कर बड़ी गहरी नींद

सो जाया करता था।


बदल गया है आज समय

जहां काम से किसी को फुर्सत नहीं।

बदल गए हैं वह लम्हे

जहां किसी की वह आहट नहीं।


ए ज़िंदगी क्यों भागती है इतना

जहां लम्हे ठहरते नहीं।

ए लम्हे क्यों भागते हो वहां

जहां किसी की याद नहीं।


आज सब भूल गया हूं मैं

हर याद - धुंधली धुंधली सी है।

मगर उस धुंधली यादों में भी

मां की वह प्यारी लोरी मुझे याद है।


पापा के साथ कहीं मेलों में

घूमने का मज़ा ही कुछ और था।

शायद वह प्यार भरे बचपन का

मजा ही कुछ और था।


ढूंढ रहा हूं इस बचपन को

जवानी के इस रंग में।

शायद खो चुका हूं इस बचपन को

जवानी के इस होश में।


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