STORYMIRROR

Meera Pitale

Tragedy Others

4  

Meera Pitale

Tragedy Others

फरीयाद...

फरीयाद...

1 min
229


तेरा घर आंगन जैसे 

कवच था मेरी सुरक्षा का

जरा सी बाहर क्या निकली 

मैं निशाना बनी हर एक की नजर का


उस नजर की घिन आती रही 

पर मैं चुपचाप सहती रही 

कुछ तो मेरे अपने ही निकले 

और कुछ अपनों की भेस में भेड़िये


विश्वास की चिता रचती देखी है मैंने 

उसी चिता पर फिर ख़ुद को पाया मैंने

बहुत कुछ कहना था तुझसे बाबुल 

पर हिम्मत ना जुटा पाई बिलकुल 


चीखती रही तेरी बेटी मगर 

अनसुना कर गए सुनकर 

फिर जब तूफान थम गया तो

मेरी मौत पर रोने काफिला जम गया


कहूंगी उस ऊपरवाले से य

ूं

जन्म देकर छोड़ ना दे बीच रास्ते में

पुकारा तो तुझे भी था मैंने 

औरों की तरह अनसुना कर दिया तूने


क्यों करूँ मैं जयजयकार तेरी

ऐसी क्या मदद की तूने मेरी 

जब कहलाता पालनहार ख़ुद को 

बचाना तेरा फर्ज था मुझ को 


बिनती है इस अभागी बेटी की 

मेरा अगला जन्म बख्शने की 

तू भी थोड़ा सही है जिम्मेदार

मेरा वजूद मिटाने में भागीदार 


पर हार नहीं मैं मानूंगी 

फिर उसी बाबुल के घर जन्म लूंगी 

होगा सामना जब उन भेड़ियों से मेरा 

इस बार दुर्गा बनकर उनका संहार करूंगी.....



Rate this content
Log in

More hindi poem from Meera Pitale

Similar hindi poem from Tragedy