फ़ना
फ़ना
एक इशारे ने तेरे ....
मुझे सोने ना दिया ,
कोई आज भी दम भरता है,
मेरी किसी अदा पे।
मैं अक्सर तुझे तन्हाई में,
जब भी याद करती हूँ,
तेरा हाथ बढ़ आता है,
मेरा दिल बहलाने को।
अपने इश्क में आज भी,
वही पहले वाली गर्मी है,
वक़्त ने गर कुछ छीना है,
तो बदनाम ना हो ये नाम अपना।
कोई दिन ऐसा नहीं होता,
जिसमें तेरी याद ना आये,
गर भूल भी जाऊँ किसी दिन तुझको,
तो रात दीवानी तेरा नाम जपे।
मूंद पलकें तब ओढ़ छिप चादर में,
ये मदहोश लब तेरा जब नाम लें,
धीरे - धीरे तब ये शमा पिघले,
बिना परवाने के भी फ़ना होने।।

