STORYMIRROR

Shailaja Bhattad

Abstract

2  

Shailaja Bhattad

Abstract

फलक

फलक

1 min
89


धुए में सब धुआं सा लगता है।धुआं हटे तो कुछ बात बने।

जमीन से फलक का सफर। जब तन्हा-सा लगा। तब मां का सिर पर हाथ दिखा।  

कह रही थी मानो,अकेला कहां है तू? रास्ते भी तो तेरे साथ हैं। अपनों के साए में ही तो, बढ़ रहे तेरे अरमान है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract