पहले तोलो फिर कुछ बोलो
पहले तोलो फिर कुछ बोलो
माना शब्द कोई बेकार नहीं,
किसी के दिल को हम दुखाए,
ये हमारा कोई काम नहीं,
झुककर मिलती हूं मैं सबसे,
इसमें मेरी कोई हाथ नहीं।
कोयल भी तो है काली,
इसकी मिठी बोली बेकार नहीं,
कानों में घोले मिश्री की गोली,
क्यूं ना सीखें हम ये बोली,
जो ना लगे किसी को भी गाली।
कुछ बोले या ना बोले,
पर पहले तोले फिर कुछ बोले,
जितना हो उतना कम बोले,
जहां जरूरत ना हो वहां ना बोले।
अपनी जुबान में मिश्री को घोले,
झगड़ों में कभी ना बोले।
प्रेम भाव से सदा हम रह ले,
पहले तोले फिर कुछ बोले।
अपनी सोच को झूठ-सच में तोले,
पहले समझे फ
िर कुछ बोले।
माना मिलें शब्द मुफ्त हमें,
पर ये कोई हथियार नहीं,
ना बोले वो शब्द कभी,
जो करें दिलों पर वार कहीं।
माना जुबान का वजन होता कम,
फिर भी ना संभले काफी बार यही।
बोल ही रहते उम्र भर यहां,
ना करता यहां कोई याद कहीं।
पहले तोलो फिर कुछ बोलो,
हमेशा तुम अमृत ही बोलो,
जो भी अपना मुख तुम खोलो,
लोगों के दिलों में खुशियां ही भर लो।
पहले तोलो फिर कुछ बोलो,
अपने शब्दों में अपनापन तुम घोलो।
बोलो उतनी ही जितना तुम सुन लो,
अपने शब्दों से किसी का दिल ना तुम तोड़ो।
पहले तोलो फिर कुछ बोलो,
सदा ये सीख याद तुम कर लो।