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Ruchika Rai

Abstract

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Ruchika Rai

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पहला प्यार

पहला प्यार

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अनछुआ अनजाना अनोखा सा एहसास,

जो नहीं कभी जेहन में था,

नहीं कभी आया कोई ख्याल।

प्रेम के लिए लगा बनी ही नहीं मैं,

लगा नहीं बन सकती कभी भी मैं  

किसी के लिए मैं खास।

अचानक से

यूँ ही तुमसे छोटी छोटी गुफ़्तगू की शुरूआत हुई

थोड़ी नोक झोंक ,थोड़ी शरारतें,

थोड़ी गंभीरता भरी बात हुई।

बातों का सिलसिला चल पड़ा

और एक फिर हमारी जज्बात हुई।

कब दुख सुख दोनों एक दूजे

का महसूस करने लगे,

दिल को खबर ही नहीं,

जिंदगी बन गए तुम ये हालात हुई।

प्रेम का ये अनोखा एहसास 

सुरूर बनकर मेरे जेहन में छाया।

स्वयं पर मन मेरा इतराया,

गुरूर स्वयं पर ही सदा आया।

दिल की दिल से फासले सारे मिट गए,

चल पड़े दिलों में प्रेम के सिलसिले,

रूह तक समा ही गए,

इश्क इबादत बनकर मेरे जीवन से जुड़ गए।

दुआ है रब से की तू सदा मेरे दिल में रहे,

दूरियों में भी चलते रहे मुहब्बत के सिलसिले।

पाकीज़गी का मन में सदा ही भान रहे,

बस दिल दिल से जुड़ा रहे सदा ही

मन में ये शान रहे।


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