फिजूल मसले
फिजूल मसले
नदियों सा उफनाओ मगर किनारों का खयाल रक्खो
किनारे वजूद की जरूरत हैं इनका एह्तराम रक्खो।
तुम्हारे वलव्लों से सिमटता जाता है आसमान साथी,
सुनो अपनो की खातिर कायम इसका मुकाम रक्खो।
हर इन्सा ,जर्रा और चमकता चाँद सितारा सूरज भी
उसी का जिसकी निगहबानी का तुम गुमान रक्खो।
कई फिजूल मसले उछाले जायेंगे सियासत में भावी
चूमें नस्लें निशां तुम्हारे इतनी तो पाकिज़गी रक्खो।