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Mayank Kumar

Abstract

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Mayank Kumar

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फीका जीवन

फीका जीवन

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किसी रात के किसी छांव में

शरीर दर्द से तड़पता है,

बापू की सारी बातें अपनी

मन को हर पल कचोटता है।


फीके जीवन में सांसे फीकी

बस यही चला करती है

किसी समंदर से बिछड़ी नदी-सा,

मेरा जीवन भी अब बहता है !


क्या बोलूं मैं बिना छत का घर हूँ,

या बिना नीर की नदी हूं मैं ,

जो न मरा है पर, जिंदा भी कहां है?


दुनियादारी की थकान मिटाते-मिटाते,

खुद से थका-हारा,

घूमता फिरता खंडहर हूँ मैं।

कड़ी धूप का प्यासा खेतों-सा हूं मैं।


लेकिन, मैं ऐसा जन्म से ही नहीं था,

मैं भी सावन की खेतों-सा लहराता था

लेकिन, बापू के श्राद्ध करने के बाद से,

मैं कड़ी धूप का प्यासा खेतों-सा हो गया।



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