पहेली प्यार की
पहेली प्यार की
घटाएँ जुल्फ की बिखरी,
नज़र भी कातिलाना है।
गुलाबी होठ से छलकी,
गजब का मुस्कुराना है।।
जमीं पर चाँद उतरा है,
रची मेंहदी हथेली है ।
जिसे सुलझा सका ना मैं,
वही अनबूझ पहेली है ।
खेलूँ जुल्फ के साये तले,
या उलझ-उलझ संभलूँ ।
तेरी आँखों की दरिया में,
थोड़ा, मैं उतर तो लूँ ।।
तेरी खुशबू बताती है,
खिली चंपा-चमेली है ।
जिसे सुलझा सका ना मैं,
वही अनबूझ पहेली है ।।
दीवाना कर दिया मुझको,
तेरी कातिल अदाओं ने।
संभलना है मुझे हमदम,
इन्हीं तिरछी निगाहों में ।।
भुला बैठा हूँ जग सारा,
ना कोई ठिठोली है ।
जिसे सुलझा सका ना मैं,
वही अनबूझ पहेली है ।।