फौजी बिटियाँ की आवाज
फौजी बिटियाँ की आवाज
मेरी माई मुझे पुकारती है,
मेरा मन मुझे ललकारता है,
मर मिट इस वतन की आन की खातिर,
क्या माई का लाल ही शूरवीर हो सकता है,
क्या पापा की परियां शूरवीर नहीं हो सकती,
मत झकड़ो मुझे इन जंजीरों में,
मैं काली हूं,मैं दुर्गा हूं,मैं रानी लक्ष्मीबाई हूं,
मैं आज के युग की नारी हूं,
मैं फूल सी कली भी हूं,
जिसको छूते ही काँटो की भांति चुभ जाती हूं,
मेरे रोम रोम में आग के अंगारे के शोले भरते हैं,
आज सीमा से फरमान है आया,
वचनों का पालन करके, मातृभूमि की रक्षा की शपथ लेकर,
वो वीरांगना दुश्मनों का सर्वनाश करने चल पड़ी,
आज वह दुल्हन के जोड़े, सात-श्रृंगार और फूलों से नहीं सजी,
आज वह हाथों में चूड़ी कंगन और पैरों में पायल नहीं खानकी है,
आज पहनी है उसने आन की वर्दी, सर पर कफ़न बांधे,
सर पर मिट्टी का तिलक करके, हाथों में शस्त्र की चूड़ी पहने सजी और खनकी है,
युद्ध में लड़ती वह वीरांगना, दुश्मन से कहती है,
ऐ मातृशक्ति पर हंसने, वाले नारियों को कमजोर समझने वाले,
आज तुम्हारा गुरुर चूर करने,तुझे माटी में मिलने आई हूं,
है हिम्मत तुझमें तो आ लड़ मुझसे,
आज मैं रणचंडी बनकर आई हूँ
सीने में गोली खा लूंगी मेरे वतन का सर नहीं झुकने दूंगी,
शहीद हो जाऊंगी लेकिन जीत का तिरंगा जरूर लहराऊंगी,
इस तिरंगे में लिपटकर मेरी लाश कर चली जाएगी,
तेरे आगे हारकर नतमस्तक होकर नहीं जाऊंगी,
जो वह कहती थी, आज वह वही कर गई,
दुश्मनों को धूल चटाकर, वहीं रण में ही सो गई,
शहीद होकर तिरंगे के कफन में लिपट कर,
शान से वो अपने वतन की ओर चली,
मेरे मिटी अपने वतन की आन-बान-शान रखकर,
नारी के सम्मान की विजय पताका फहराकर वह अमर शहीद हो गयी!