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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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"पगड़ी"

"पगड़ी"

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हमारे सर की हिफ़ाजत करती है,पगड़ी

हमारी इज्जत से मोहब्बत करती है,पगड़ी

यूँ न उतार साखी तू किसी के सामने,पगड़ी

सिर्फ रब के सामने उतारी जाती है,पगड़ी

क़द्र करो सब दुनियावालों अपनी पगड़ी की,

हमारीआन-बान-शान की पहचान है,पगड़ी

जो भी आदमी माथे ऊपर धरते है,पगड़ी 

वो जानते हीरे से ज्यादा कीमती है,पगड़ी

भारतीय संस्कृति की पहचान है,पगड़ी

हेलमेट का पुरातन रूप है,हमारी पगड़ी

अपनी पगड़ी पर आप सब अभिमान करो,

हजार शूलों में खिला हुआ गुलाब है,पगड़ी

युगों-युगों की हिंद हिमालय भाल है,पगड़ी


दिल से विजय




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