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Taj Mohammad

Abstract Tragedy

4  

Taj Mohammad

Abstract Tragedy

पढ़े पन्नों केअख़बार हो गए

पढ़े पन्नों केअख़बार हो गए

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इक उनके दूर जाने से देखो हम बेकार हो गए।

ऐसा लगे जैसे हम पढ़े पन्नों के अखबार हो गए।।1।।


दोबारा ना होगी इश्क करने की गलती हमसे।

एक बार धोखा खाकर हम समझदार हो गए।।2।।


बेवजह ही देखो हम सबकी नजरों में चढ़ गए।

माँ के अलावा हम यूँ सब के कुसूरवार हो गए।।3।।


सबने कहा था इश्क मोहब्बत तुम करना नहीं।

फिर भी दिल लगाया और हम बरबाद हो गए।।4।।


मैंने छुपाकर रखा था गुनाहों को सीने के अंदर।

फिर भी मुलाज़िम जाने कैसे राज़दार हो गए।।5।।


खुदा ही जानें क्या हुनर है उनकी आवाज़ में।

उनके गए गीत सारे के सारे सदाबाहर हो गए।।6।।


थोड़े से पैसे क्या आ गए उस गरीब के पास।

शहर में उसके भी दुश्मन देखो दो चार हो गए।।7।।


जरा से तेवर क्या दिखाए सबको हमने अपने।

मेरे सारे के सारे दुश्मन देखो खबरदार हो गए।।8।।


सियासत की ख़ातिर दंगे करा के तुमने गंदा काम किया।

खुशफ़हमी है तुम्हारी ये सोचना कि तुमअसरदार हो गए ।।9।।


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