पछतावा
पछतावा
झील सी सुन्दर आँखों में
आँसुओं की नमी है,
कहने को तो हम खुश हैं
फिर भी दिल में कुछ कमी है,
काश हमने अपने दिल की
बात सुन ली होती,
तो आज हमारी किस्मत
हम पर यूँ ना रोती,
काश मैं बीते हुए
कल में जा पाती,
मिटा देती उन लम्हों को
जो आज भी है तड़पाती,
औरों को खुश करने में
बहुत कुछ है खोया,
मारती रही अपने मन को
जो बहुत रोया,
काश ऐसा होता मैं
फिर बच्ची बन जाती,
खेलती कूदती नाचती
गाती और खिलखिलाती,
याद करके खुश होती हूँ
अपना वो बचपन,
जब शैतानी करते थे
हम सारे बंधुजन,
मेरी बच्ची में दिखती है
अपनी ही तस्वीर,
है दुआ कि सँवारे
वो अपनी ही तकदीर,
जो गलती मैंने की
कहीं वो ना दोहराए,
काम न ऐसा कोई करें
कि फिर वो पछताए।।
