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Aparna Subramanian

Tragedy

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Aparna Subramanian

Tragedy

आशा और‌ निराशा

आशा और‌ निराशा

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देखा था मैंने भी एक सपना, 

ऐसा‌ मिले‌ कोई हमसफ़र‌ अपना। 

जो करें मुझपे विश्वास और प्यार। 

और‌ हमारा हो एक छोटा सा खुशहाल परिवार। 


नसीब मेरा मुझसे‌ ऐसे रूठा, 

जीवन साथी‌ का साथ भी छूटा। 

कभी हुआ करता था मेरा भी आशियाना।

अब तो यह आलम है कि, ना मेरा घर है, ना ठिकाना। 


अपने जीवन में मैंने इतने आंसू बहाए, 

कि अब रोना चाहूँ‌ तो भी आंसू ना आए। 

कभी ना सोचा बुरा किसी का, फिर भी हुआ मेरा ये हाल।

कई लोगों के उठने लगे हैं मेरे भविष्य पर सवाल।


मेरी मां ने भी किया है दुखों में ही अपना जीवन व्यथित । 

प्रेरित करती है मुझे यह कहकर, दुखों के दिन भी जाएंगे बीत। 

अग्नि में तपकर ही निखरता है सोना । 

अपने जीवन से इतनी जल्दी निराश मत होना । 


मां के इन शब्दों को सुनकर जगी है एक नई उम्मीद। 

कोशिश करती रहूंगी तब तक मैं जब तक ना होगी मेरी जीत । 

मेरी मां और बेटी ही देती हैं मेरे अंधेरे जीवन में ज्योति । 

ढूंढ निकालूंगी अपने जीवन सागर में सफलता की उत्कृष्ट मोती। 



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