पानी बचाओ
पानी बचाओ
बरसों पहले ना किसी को थी पानी की चिंता,
नदी का पानी सबको बेशुमार मिलता।
फिर खुदे हर घर में कुएं,
पानी मिलने लगा बिना घर से दूर हुए।
फिर जब पानी पहुंचा काफी नीचे,
लोगों ने बोरवेल लगा लगा कर ऊपर खींचे।
जब पानी और हुआ कम,
बढ़ने लगा इन्सान का घम।
तब उसने लगवाली पैपें,
अब वो बेफिक्र पानी फेंके।
मूर्ख ये भी ना जाने,
पूर्वज थे उसके बड़े सयाने।
दूर से चलकर लाते थे पानी,
सब ने थी उसकी एहमियत जानी।
बेवजह पानी कोई न बहाता,
क्यों के बड़ी दूर से था उसे लाना पडता।
आज इन्सान आलसी जो हुआ,
पानी उड़ाता है जैसे धुआं।
हमने तो कुओं में देखा था पानी,
बच्चों ने देखा है सिर्फ नलों में पानी।
अगर चलती रहे यही मनमानी,
अगले पीढ़ी को दिखेगा, बस बोतलों में पानी।
उठो इन्सान! अब तो जाग जाओ!
हर दिन हर पल, सब मिलकर पानी बचाओ।
