ओर चलें हम
ओर चलें हम


बाहर सपनों से निकले हम,
फिर गाँवो की ओर चलें हम।
ये सपने माया ममता के,
गले घोटते हैं समता के।
क्यों जाएं फिर वहां छले हम,
फिर गाँवों की ओर चलें हम।
बड़े बड़े हम मकां छोड़कर,
खोली में आ गए दौड़कर।
दड़बों में दिन रात गलें हम,
फिर गाँवो की ओर चलें हम।
पांवों में छाले सबके हैं,
खाने के लाले सबके हैं।
लगें काम पर शाम ढले हम,
फिर गाँवो की ओर चलें हम।
दुर्घटना बस एक घटना है
देकर साक्ष किसे कटना है।
क्यों डालेगें हार गले हम ?
फिर गाँवो की ओर चले हम।
दादा दादी नाना नानी,
साथ रखें तो हैं अज्ञानी।
गहरे थे पर अब उथले हम,
फिर गाँवो की ओर चलें हम।
कौन पड़ोसी किसका साथी,
दीपक है "अनंत" बिन बाती।
पर हित में कब यार जले हम,
फिर गाँवों की ओर चलें हम।