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बेज़ुबानशायर 143

Abstract Tragedy Inspirational

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बेज़ुबानशायर 143

Abstract Tragedy Inspirational

ओज भरी हुंकार

ओज भरी हुंकार

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मैंने लिखे गीत तराने मधुर मधुर मुस्कान लिए। 

अंतर्मन भाव सुहावने भारत मां की शान लिए। 


राष्ट्रदीप ले स्वाभिमान के भाव सजाया करता हूं। 

मन मंदिर में दिव्य प्रेम के दीप जलाया करता हूं। 


मैं कविता की हुंकारो से गीत वतन के गाता हूं। 

देशभक्ति की धारा में जन मन जोश जगाता हूं। 


शौर्य पराक्रम ओज भरे चुनता शब्द रणधीरों के।

मातृभूमि शीश चढ़ाए उन मत्तवाले रणबीरों के।


खनखनाती शमशीरें जब राणा का भाला चलता।

कायर मान युद्ध से भागे चेतक जिधर निकलता।


चक्रवर्ती वीर शिवाजी धर अदम्य साहस भरपूर। 

मुगलों को पछाड़ दिखाया मंसूबे कर चकनाचूर। 


गर्व हमें गौरव गाथा पे कण-कण पे अभिमान है। 

रणबांकुरों ने रक्त बहाया तिरंगा वतन सम्मान है।



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