ओ पंछी ! तुझे गाँव बुलाता है
ओ पंछी ! तुझे गाँव बुलाता है
तेरी याद में निशदिन रह-रह अकुलाता है।
ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।।
अनगिनत ख्वाबों को संग में ले चले
उड़ते-उड़ते तुम इतनी दूर उड़ चले
वापस आना भी चाहो तो मन जलाता है।
ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।।
दादी माँ के किस्से तुझको पुकारते हैं
दादा के वो हाथ अब भी दुलारते हैं
देखो हमारा लाडला आज घर आता है।
ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।।
तुझको बुलाती है हीरा-मोती की जोड़ी
तुझको बुलाती है रम दा की कलिया घोड़ी
पूसी, झबरा को भी अब घर नहीं भाता है।
ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।।
तुझको बुलाते हैं गोलू नंदा महासू
तुझको बुलाते हैं माँ के ढुलकते आंसू
बीमार पड़े अब्बा का मन ताड़ न पाता है।
ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।।
तुझको बुलाते हैं सूखे नौले-धारे
तुझको बुलाते हैं सूने आंगन सारे
खतड़ू, हरेला त्यारों का सीजन नहीं आता है।
ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।।
तुझको बुलाती है बंजर खेतों की उदासी
तुझको बुलाती है बाखलियों की खामोशी
झट्ट आ जा प्रिये रहा नहीं जाता है।
ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।।
