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Pawanesh Thakurathi

Abstract

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Pawanesh Thakurathi

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ओ पंछी ! तुझे गाँव बुलाता है

ओ पंछी ! तुझे गाँव बुलाता है

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तेरी याद में निशदिन रह-रह अकुलाता है।

ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।।

अनगिनत ख्वाबों को संग में ले चले

उड़ते-उड़ते तुम इतनी दूर उड़ चले

वापस आना भी चाहो तो मन जलाता है।

ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।।

दादी माँ के किस्से तुझको पुकारते हैं

दादा के वो हाथ अब भी दुलारते हैं

देखो हमारा लाडला आज घर आता है।

ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।।

तुझको बुलाती है हीरा-मोती की जोड़ी

तुझको बुलाती है रम दा की कलिया घोड़ी

पूसी, झबरा को भी अब घर नहीं भाता है।

ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।।

तुझको बुलाते हैं गोलू नंदा महासू

तुझको बुलाते हैं माँ के ढुलकते आंसू

बीमार पड़े अब्बा का मन ताड़ न पाता है।

ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।।

तुझको बुलाते हैं सूखे नौले-धारे

तुझको बुलाते हैं सूने आंगन सारे

खतड़ू, हरेला त्यारों का सीजन नहीं आता है।

ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।।

तुझको बुलाती है बंजर खेतों की उदासी

तुझको बुलाती है बाखलियों की खामोशी

झट्ट आ जा प्रिये रहा नहीं जाता है।

ओ प्रवासी पंछी तुझे गाँव बुलाता है।। 


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