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ओ मेरी गुमनाम शक्ल

ओ मेरी गुमनाम शक्ल

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ओ मेरी गुमनाम शक्ल कहाँ ढूँढू तुम्हे मैं इस जीवन में

कई रंग बिरंगे चेहरे दिखते हैं

मुझे दुनिया की इस भीड़ मे !

कोई काला दिखता है मुझे

तो कोई गोरा दिखता है !

बड़ी अजीब - सी है ये बात

नहीं कोई इंसान - सा लगता है


कैसे अपनाऊँ तुम्हे अब मैं

ये बड़ी चिंता - सी हो गयी है

बिना वजह ही जिनकी याद मे

दिल गमगीन - सा लगता है !


क्या नाम है तेरा

मैं अब ये पूछना चाहता हूँ

तेरी इन्ही यादो को मैं

किताबों मे लिखता रहता हूँ !

नहीं कर पाता हूँ इनके बीच में

इंसानियत का बंटवारा

मुझे लगता है इक पल मे

कहाँ हूँ मैं अब आ गया

ओ मेरी गुमनाम शक्ल

कहाँ ढूँढू तुम्हे मै इस जीब मे, कई रंग बिरंगे चेहरे दीखते है मुझे दुनिया के इस भीड़ मे ! कोई काला दीखता है मुझे तो कोई गोरा दीखता है! बड़ी अजीब सी है ये बात नहीं कोई इंसान सा लगता ह


कोई मंदिर मे अपनी अधूरी मुरादे पूरी करता है, कोई मस्जिद के चौखट पर दुआओं मे अल्लाह को ढूंढता है! इक अजीब सी चिंता है मुझे कैसे पहचनाऊ मै तुमको सभी ईश्वर अल्लाह और खुदा एक जैसा दिखे मुझको !

तुम्हे पाने की चाहत सब इंसान को एक जैसी ही है, सब के ख्यालो मै भी इक मर्ज दुःख दर्द का ही पले! फिर क्यू तेरी शयाँ पर चंद लोगो का है पैहरा, खुद ही को जिसने आज यहाँ समझ बैठा है एक खुदा!

ओ मेरे गुमनाम शक्ल कहाँ ढूँढू तुम्हे मैं इस जीवन मे

कई रंग - बिरंगे चेहरे दिखते हैं

मुझे दुनिया की इस भीड़ मे !

कोई काला दिखता है मुझे

तो कोई गोरा दिखता है !

बड़ी अजीब - सी है ये बात

नहीं कोई इंसान - सा लगता है !


कोई दूर बैठा क्यों रो रहा है

नहीं है कुछ भी ये मालूम

किसी अजनबी ने देखा उसे

तो कहा, तू है खुदा को नामंज़ूर !

सुन के ये बाते दिल में कहीं

ठेस - सी है लगी

ना जाने क्यों उस अजनबी ने

इस अजनबी से ऐसा कहा !


क्या भगवान था वो कोई,

जो मुझे मिला था कुछ पल के लिए,

या था कोई आया

इसे खुद इसकी नज़रो मे गिराने !

क्या है सही

क्या है गलत

मैं ना अब तक जान पाया यहाँ,

इस ज़िंदगी मे ये जीना भी अब लगे है एक सज़ा !

गर है कहीं तू छुपा खुदा

तो मेरी फरियाद सुन ले ना,

नहीं दे सकता ये ज़िंदगी

तो अब मौत ही दे दे न...!


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