नज़रिया
नज़रिया
कोई चंद खुशिया संभाल न पाया
कोई गम में भी मुस्कुराता रहा
कोई लिए शिकायतों का पुलिंदा
सिर्फ चंद जवाब तलाशता रहा।।
किसी ने रोटी दो टुकड़ों में बाँट ली
कोई पकवान भी ढंग से न खा सका
निकलता रहा कमी हर निवाले पर
कोई रोटी में स्वाद बेमिसाल पा गया।।
सुख और दुख नज़रिया है नज़रों का
कोई सब कुछ पाकर खुश न दिखा
जिसको रोटी टुकड़ों में मिली खाने को
वो कोटि कोटि धन्यवाद हज़ारों दे गया।।