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अनूप सिंह चौहान ( बब्बन )

Abstract

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अनूप सिंह चौहान ( बब्बन )

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नज़रिया

नज़रिया

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कोरे कागज़ को आत्मा देकर,

सजीव कर गई थी स्याही,

पर चारों तरफ थी कलम,

और कलमकार की वाह-वाही।


तब कागज़ ने आवाज़ लगाई,

अरे सुन तो सही काली स्याही,

क्यों दिखाती है तू यूं लापरवाही,

मुझमें ये आत्मा तो तू ही थी लाई।


सुन ये बात स्याही मुस्कुराई,

बोली ये बात तुझे किसने बताई,

मुझे तो खुद उस कलमकार ने ही,

बनाया अपने दर्द कहने का जरिया।


तेरा ये रूप और आत्मा सब है

उसका अपने जीवन का नज़रिया। 


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