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AKIB JAVED

Abstract

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AKIB JAVED

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नज़्म

नज़्म

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सिसक के गिन रही है गिनतियाँ ज़ुबाँ

आएगा वक़्त और बयाँ होगा किस्सा


कि सड़कों पे दौड़ रही है बच्चियाँ

तख्तियां लेकर चल रहे है बच्चे


यहाँ औरतें सम्भाले हुए है मोर्चा

कि वक्त आने पे बयाँ होगा किस्सा


लगा दिया जाता है तोहमत यहाँ पर

गद्दारी का तमगा भी बँट रहा है मुफ़्त


कि छीन लो लबो से भले आज़ादी तुम

कि वक़्त आने पर बयाँ होगा किस्सा


दौर-ए- हाजरा जैसी गुज़री थी पहले भी

कि कोई मूसा होगा जरूर यहाँ पर


जो देगा मात फ़िरौन के लश्कर को

तारीख़ खुद को दोहराती है खुद से


सिसक कर गिन रही है गिनतियाँ ज़ुबाँ

आएगा वक्त और बयाँ होगा किस्सा।


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