नवीन ऋतु
नवीन ऋतु
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जब किया सर्दी को सिराहने से दूर
जब हवा हुई कुछ खुश्क नरम,
कोपल से फटी फूलों की रंगीन चादर
तब लगा कि बसंत आया निज द्वार
छाया नया सुरूर ,जगी मेरी भी उम्मीद
भरा खुदी मैं जोश फिर जाग उठी सोयी नींद
कुछ नया सा अब होने को है
बिसरी कहानियों के कुछ पन्ने
अब नयी शक्ल लेने को हैं,
नवीन ऋतु का अभिनंदन
संपूर्ण सृष्टि करने को है,
करें प्रार्थना सब जग खुशहाल हो
आप सभी पर सदा ...
मां सरस्वती की कृपा हो।