नश्वर शरीर पर न कर अभिमान
नश्वर शरीर पर न कर अभिमान
पंचतत्व से निर्मित है ;
यह नश्वर मानव देह !
इसे एक दिन नष्ट होना है,
छोड़कर सारा प्रेम नेह !
मोह माया से सब दूर रहें ;
जैसे रह रहे हों कभी विदेह !
सदकर्म से ही सुफल मिलता ;
इसमें नहीं है कोई भी संदेह !
सबको मिलता रहे सदा ;
प्रभु जी का अनुपम स्नेह !
ईश्वर की आराधना में है लिपटी ;
भावना संग मानव मन की गेह !
