नशा...
नशा...
मिलता था सुकून कभी नशा करके,
आज उससे नफरत हो गई है l
पल दो पल का सुख है,
बाकी तो शरीर से बेवफाई है ll
कभी किताबों का नशा करके देखो,
इंसानियत भ्रष्ट नहीं होती l
देती सदा सद-ज्ञान,
पलट के कुछ नहीं मांगती ll
पता है कुछ लोग पढ़कर जरूर हंसेंगे l
समय चक्र में पहले वे ही फंसेंगे ll
जिंदगी एक मौका देती,
यह सारा जमाना बता रहा है l
समझ जाओ अब तो,
यह एक नशेबाज जता रहा है ll
